पिता बचपन में ही गुजर गए थे, और अब घर में बस एक ही सहारा था — उसकी बीमार मां कुसुम जी।

राजीव की उम्र जब चालीस के पार पहुंच चुकी थी, तब जाकर उसने अपने ऑफिस में काम करने वाली सहयोगी नेहा से विवाह किया। नेहा एक अनाथ लड़की थी, जिसे उसके चाचा-चाची ने पाला था। राजीव भी कोई रईस खानदान से नहीं था — पिता बचपन में ही गुजर गए थे, और अब घर में बस एक ही सहारा था — उसकी बीमार मां कुसुम जी।

शादी के बाद नेहा ने ना सिर्फ घर को संवारा, बल्कि सासू मां की सेवा में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। दवा, खाना, सफाई — सब कुछ वो समय पर और पूरी श्रद्धा से करती। कुसुम जी भी बहू से बहुत प्रसन्न थीं। पर धीरे-धीरे एक बदलाव उन्होंने महसूस किया — नेहा अब उनके साथ बैठकर खाना नहीं खाती थी।

पहले दोनों साथ बैठकर बातें करते, खाना खाते और हँसते। लेकिन अब नेहा, किचन का सारा काम खुद करती और खाना कहीं एक कोने में जाकर खा लेती।
एक दिन शाम को नेहा ने जैसे ही कुसुम जी को चाय और बिस्किट थमाए, खुद थोड़ी दूर बैठ गई और एक लाल डिब्बे से कुछ खाने लगी।
कुसुम जी की नज़र उसी डिब्बे पर अटक गई —
"आख़िर उसमें ऐसा क्या है जो मुझे नहीं दे रही?"

रात को जब सब सो गए, तो दिल की बेचैनी उन्हें रसोई तक खींच लाई। उन्होंने कांपते हाथों से डिब्बा उठाया... लेकिन हाथ फिसल गया और डिब्बा ज़मीन पर जा गिरा।

धड़ाम!

राजीव और नेहा दौड़े आए, "क्या हुआ माँजी?"

"कुछ नहीं बेटा, शक्कर ढूंढ रही थी..." — उन्होंने बात को टालने की कोशिश की।

नेहा ने झुककर डिब्बा समेटते हुए कहा, "कल से मिश्री आपके कमरे में ही रख दूंगी माँजी।"

कुसुम जी की नज़र उस खुले डिब्बे पर पड़ी — अंदर सिर्फ टूटे हुए बिस्किट के टुकड़े थे।

सुबह होते ही उन्होंने धीमे स्वर में कहा —
"बहू... मेरे दांत अब साबुत बिस्किट नहीं तोड़ पाते... वही टुकड़े ही दे दिया करो ना।"

नेहा ने मुस्कुराकर जवाब दिया —
"माँजी, आप ही तो कहती थीं — बचा-कुचा किसी को नहीं देना चाहिए... फिर आपको मैं कैसे दे दूं?"

कुसुम जी की आँखें भर आईं। उन्होंने नेहा का हाथ थामा और कांपते स्वर में बोलीं —
"बेटी, तू मेरी सबसे बड़ी दौलत है... तूने मुझे रिश्तों की असली मिठास चखाई है।"

🌼 ये कहानी सिर्फ नेहा और कुसुम जी की नहीं, हर उस घर की है जहाँ दिल से बनाए गए रिश्ते, शब्दों से कहीं ज़्यादा बोलते हैं।

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रिश्ते बिस्किट की तरह नहीं होते... जो टूट जाएं तो फेंक दिए जाएं, बल्कि टूटे हिस्से में भी मिठास हो सकती है — अगर नज़र में समझदारी हो।

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