Dil Ki Awaaz...........

"रुप....
अपनी मां को खुश देखकर रीतू ने हैरानी से पूछा....कया हुआ मां आज महीनों बाद आपके चेहरे पर ये मुस्कुराहट दिखाई दी वरना पापा के चले जाने के बाद से तो ...
आज तेरे दोनों मामा आएं थे 
मामा....कयुं 
कह रहे थे कि कोई काम नहीं हो रहा तो उसमें मेरे साइन की जरूरत है कुछ पेपर्स पर उन्हें साइन करवाएं और चलें गये
मतलब.... दोनों मामा यहां आपके साइन लेने आए थे और तुमने कर भी दिए पढ़ा भी था क्या लिखा हुआ था उन पेपर्स पर
अरे मेरे छोटे भाई है तो क्या पढ़ती और आज तीन साल बाद उन्होंने घर में कदम रखे और तू है की बेफालतू की बातों में मुझे उलझा रही है
पता नहीं कब समझ में आएगा तुम्हें मां ये दुनिया उतनी अच्छी नहीं है जितनी दिखाई देती है पता नहीं क्या अपने नाम लिखवा लिया उन्होंने
पागल है तू हमारे पास है ही क्या ये घर भी किराए का है और कोई जमीन जायदाद तो हमारी कभी थी ही नहीं ये जो हम मां बेटी सिलाई कढ़ाई करती है ना मत भूल मेरे उन्हीं दोनों भाइयों की बदौलत है वरना ना जाने कहां दरदर की ठोकरें खा रहे होते कुछ ही दिनों बाद रक्षाबंधन आ रहा है जरुर बहाने बाजी करके मुझसे मिलने आएं थे में क्या समझती नहीं हूं छोटे जरुर है मगर है दोनों बड़े समझदार बीते सालों में इस महामारी में नहीं आएं थे मगर शगुन बराबर मनीआर्डर करते रहे और फिर तेरे पापा के अचानक चले जाने पर ये सिलाई मशीन से काम दिलवा दिया
मां वो सब तो ठीक है मगर मुझे कुछ गड़बड़ी लगती है ये आजकल के रिश्ते बस दूसरे को लुटने भर को यह गये है
रिश्ते कल भी प्यार और विश्वास के थे और आज भी है और आनेवाले समय में भी प्यार और विश्वास के मजबूत खंम्भे पर टिके हुए ही रहेंगे मगर रीतू को अपनी मां की बात पर यकीन नहीं हो रहा था
खैर कुछ दिनों बाद रक्षाबंधन का पावन दिन भी आ गया
सुबह तकरीबन दस बजे दरवाजे पर स्कूटी आकर रुकी दोनों भाइयों को स्कूटी से उतरते हुए देखकर एकबारगी तो सुनीता को विश्वास नहीं हुआ क्योंकि बीते दो सालों में उसके भाई ना तो रक्षाबंधन और ना ही भाईदूज पर आएं थे ....हां उसके पिताजी जरुर आ जाते थे मगर बीते कुछ महीनों पहले वो भी स्वर्ग सिधार गए थे
प्रणाम दीदी
अरे तुम दोनों आओ ना....
दोनों को अंदर बिठाकर सुनीता ने रीतू को जल्दी से मिठाई और राखी लाने के लिए पैसे पकड़ाए....
क्या मंगवा रही हो दीदी हम मिठाई और राखी लेकर आएं हैं ये देखिए आप तो बस आकर प्यार से हमें बांध दीजिए
दोनों ने मुस्कुरा कहा तो सुनीता भी मुस्कुराते हुए जल्दी से बैठ गई मगर रीतू अब भी दोनों मामाओं को शंकाओं से घूर रही थी
अरे तुम वहां क्या कर रही हो राखी बहनों के साथ साथ बेटियां भी बांध सकती है कयुं भैया मैंने ठीक कहा ना सबसे छोटे भाई ने कहा 
हां बिल्कुल...आ जा रीतू बैठ और हमें राखी बांध बड़े ने हंसते हुए कहा 
रीतू का मन बैठने का नहीं था मगर वो चुपचाप बैठ गई और राखी बांधने के लिए उठाए बोली.... अच्छा मामाजी एकबात पूछूं ऐसा कौन सा काम था जो मां के साइन के बिना नहीं हो रहा था आप ने मां से किस पेपर्स पर साइन करवाएं थे
रीतू.... मैंने कहा था ना सुनीता गुस्से से रीतू को देखकर बोली
नहीं दीदी उसे मत डांटिए बल्कि में तो कहूंगा शाबाश बेटा ऐसे ही हमेशा सतर्क रहना चाहिए 
दरअसल तुम्हारे नानाजी ने एक बड़े बाजार में एक प्रोपर्टी ली थी जिसमें तुम्हारी मां को नॉमिनी बनाया था हम दोनों भाइयों ने बहुत कोशिश की मगर वो अपने नाम नहीं करवा पाए क्योंकि तुम्हारी मम्मी के साइन के बिना ये मुमकिन नहीं था तो उसदिन वहीं करवाने आएं थे
दोनों मामाओं की बात सुनकर रीतू गुस्से से लाल होकर बोली....सुन लिया आपने.... में ना कहती थी ये रिश्ते बस दूसरे को लुटने के लिए ही बनाए जाते हैं कहकर रीतू उठकर दूसरे कमरे में चली गई वहीं दूसरी ओर सुनीता भीगी हुई पलकों को साफ करते हुए चुपचाप दोनों भाइयों को राखी बांधने लगी मगर दोनों भाई ये सब देखकर भी मुस्कुरा रहे थे तभी छोटे भाई ने दूसरे कमरे में जाकर रीतू को पकड़कर बाहर लाते हुए कहा 
राखी तो बांध दी अपना तोहफा नहीं लोगी मगर रीतू तो गुस्से से लाल पीली हो रही थी मगर बड़े मामा ने उसे एक बड़ा सा पैकेट देते हुए कहा....लो ...ये तुम्हारे लिए और दीदी ये तुम्हारे लिए एक दूसरा पैकेट सुनीता की और बढ़ाते हुए कहा मगर दोनों मां बेटी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह पैकेट खोलकर देखें तो दोनों भाइयों ने कहा अच्छा ठीक है हम जा रहे हैं हमारे बाद देख लेना
और दोनों चले गए 
कुछ देर तक कमरे में मौन पसरा रहा फिर रीतू गुस्से में उठी और पैकेट को अनमने खोलकर देखने लगी
पैकेट में कुछ नये कपड़े थे और साथ में पेपर्स के साथ एक चिठ्ठी थी रीतू हैरानी से पेपर्स निकालकर देखने लगी कुछ समझ ना आने पर उसने चिट्ठी को पढ़ना शुरू किया
दीदी....आज रक्षाबंधन है यूं तो हम दोनों आपसे छोटे हैं और मां के बाद हमने आप में ही मां का रुप देखा है आपने भी हमें छोटे भाइयों की तरह नहीं बल्कि बेटों की तरह प्यार और दुलार दिया है दीदी पापा के साथ मिलकर हमने एक प्रोपर्टी खरीदी थी जिसमें आपका नाम भी शामिल था ताकि हमारी भांजी की शादी तक उसके विवाह हेतु कुछ राशि जमा हो जाएं अब पापा तो रहें नहीं और उधर जीजाजी भी नहीं रहे और कल किसने देखा है 
दीदी आप किराए के घर में रहें और हम अपने.... इसलिए हमने उस प्रोपर्टी पर एक दुकान और ऊपर एक घर बनवाया है ताकि आप दुकान पर सिलाई कढ़ाई का काम कर लो और ऊपर मकान में रह सको दुकान मकान आपके नाम पर हो इसलिए उन पेपर्स पर आपके साइन जरुरी थे ये वही पेपर्स है दीदी आप सिलाई जानती थी और रीतू को भी इसकी समझ पड़ सकें ताकि भविष्य में आप दोनों आत्मनिर्भर बनी रह सको इसलिए हमने आपको सिलाई का काम दिलवाया वैसे छोटे बड़ों को कुछ दे नहीं सकते मगर आप बड़े हो तो अपने भाइयों अपने बेटों पर अपना आशीर्वाद बनाए रखियेगा और हां जब नाराज़गी दूर हो जाएं तो फोन कर दीजियेगा आखिरकार शिफ्टिंग भी तो करवानी है कयुं ....आ गई ना चेहरे पर मुस्कराहट बस ऐसे ही हमेशा मुस्कुराते हुए रहना
चिठ्ठी पढ़ रही रीतू के साथ साथ सुनीता भी रो पड़ी और रुंधे गले से बोली... मुझमें मां का रुप दिखाई देता है झूठे 
खुद दोनों मुझे पिता बने बेटी की तरह प्यार करतें हैं
मां.... में कितना गलत थी मुझे तो.... मगर आप बहन भाई एक दूसरे से इतना प्यार करते हैं
केवल हम ही नहीं दुनिया का हर भाई ज़रुरत पड़ने पर पिता और हर बहन मां का रुप ले लेती है कहकर सुनीता ने रीतू को दोनों भाइयों को फोन लगाने को कहा...
एक सुंदर रचना...

आभार:- डॉ०- अनूप राठौर 
गोला गोकरननाथ (खीरी)

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