❤️ अनूप - संगीता की अनोखी प्रेम कहानी

नाम सुन के क्या लगता हैं आपको ? प्यार का एहसास क्या होता हैं। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं प्यार का एहसास का मतलब क्या होता हैं।

ये कहानी एक रईस परिवार की लड़की जिसका नाम संगीता है और दूसरी और एक मध्यम परिवार का लड़का जिसका नाम अनूप हैं। दोनों एक दूसरे से बहुत अलग हैं लेकिन क्या उन्हें एक दूसरे से प्यार हो पायेगा चलिए जान लीजिये आप खुद ही।

संगीता बचपन से एक आलिशान घर, गाडी, और रहन-सहन में पली बड़ी है। वही अनूप बचपन से अपने परिवार को संघर्ष करता देख बड़े होते होते उससे अपने जिम्मेदारी का एहसास होने लगा।

ज्यादा पैसे न होने के कारन से वो ज्यादा पढ़-लिख ना सका , वही दूसरी और सब कुछ होने के बाद भी संगीता को पढ़ने - लिखने का मन ना होने के कारन पढ़ ना सकी। वक़्त के साथ साथ दोनों बड़े हुए अपने अपने रहन-सहन से। एक और अनूप एक छोटे से कार कंपनी में काम करने लगा। वही दूसरी और संगीता अपने जिंदगी घूमने मस्ती में बिताने लगी। एक दिन आया जब दोनों का एक दूसरे से सामना हुआ, वो कुछ इस तरह हुआ की एक दिन अनूप एक कार को टेस्टिंग करने निकला था, वही संगीता अपने दोस्तों के साथ कार में घूमने निकली थी। थोड़ी दूर जा के संगीता की गाडी ख़राब हो गयी और उसी वक़्त अनूप ने देखा की कोई वहा लिफ्ट मांगते हाथ दिखा रहा हैं। अनूप गाडी साइड में कर उतर के संगीता की और गया फिर क्या संगीता उससे देख पूछने लगी - "क्या आप हमे थोड़ी दूर तक छोड़ सकते हैं ? " अनूप उसकी बातों को सुन के चुप चाप गाडी की और गया और गाडी चेक करने लगा। ये देख संगीता को अच्छा नहीं लगा की वो किसी से पूछ रही है और अनूप जवाब नहीं दे रहा। अनूप कुछ देर बाद बिना किसी से कुछ कहे चले जाता है। ये देख संगीता को कुछ समझ नहीं आया तभी पीछे से आवाज आते हुए - " संगीता गाडी चालू हो गयी अंदर आजा " ये सुन संगीता उससे सुक्रिया करने जाती तब तक अनूप निकल चूका था। संगीता फिर गाडी में बैठ चले गयी। एक दिन आया जब संगीता का जन्मदिन था वो हर साल की तरह अपने परिवार के साथ मंदिर गयी वहा उसने अनूप को फिरसे देखा वो देखते ही उसके पास गयी उससे उस दिन के लिए सुक्रिया कहने, ये सुन अनूप ने उससे देख मुस्कुरा दिया। ये देख संगीता ने अनूप से पुछा - " क्या तुम बोल नहीं सकते ? उस दिन भी मैंने पुछा था तब भी कुछ नहीं बोले आज भी जब मैं खुद आयी तुम्हारे पास तुम्हे सुक्रिया कहने तोह आज भी बस मुस्कुरा दिए और कुछ कहा नहीं। फिर अनूप ने कहा की मुझे देर हो रही थी लेकिन मैंने वहां तुम्हे देखा की तुम लिफ्ट मांग रहे थे इसीलिए मैंने गाडी रोक के तुम्हारी गाडी ठीक करने चले आया।

फिर दोनों के बीच बाते चलने लगी फिर अनूप को देर हो रही थी तो अनूप ने कहा की अब मुझे जाना होगा मुझे ऑफिस के लिए लेट हो रहा है। जाते जाते अनूप ने उससे दोस्ती की हाथ बढ़ाया कहा की क्या हम दोस्त बन सकते है ये सुन संगीता ने कहा - " मुझसे दोस्ती ? में हर किसी से दोस्ती नहीं करती। ये सुन अनूप ने हस्ते हुए कहा - " चलो ठीक है कोई नहीं वक़्त बताएगा की दोस्ती करते हो या नहीं आप।

ये बोल के वो चल दिया और वहा संगीता भी अपने घर की और निकल पड़ी। कुछ दिनों बाद संगीता और अनूप एक मॉल में मिलते है, अनूप देख संगीता से पुछा - " तुम यहां कैसे ? संगीता देखते हुए -" बस युही घूमने के लिए आयी हु तुम्हारा आज ऑफिस नहीं है जो यहां आये हुए हो ? अनूप ने कहा आज बस जल्दी काम खत्म हो गया था तो सोचा थोड़ा घूम लू। फिर दोनों एक कैफ़े में गए और बाते करने लगे। संगीता ने अनूप से कहा - " अपने बारे में बताओगे कुछ ?

अनूप हस्ते हुए कहने लगा - " में क्या बताऊ अपने बारे में मेरा तो बस एक साधा जिंदगी है जहाँ रोज सुबह ऑफिस जाता हूँ और शाम को घर जा के घर का कुछ काम कर लेता हूँ बस फिर खा के सो जाना फिर वही सुबह फिरसे।

फिर अनूप ने पुछा आप क्या करते हो ये सुन संगीता हसने लगी और कहा -" मुझे कुछ करने की जरुरत ही नहीं पड़ती सब बिना कुछ किये ही मिल जाता हैं तो क्यों करुँगी में कुछ। फिर अनूप ने कहा अच्छा हैं फिर तो हम बहुत अलग हुए।

ये सुन संगीता ने कहा हां अलग तो हुए हम फिर भी तुम्हारे साथ बैठी हूँ यहां। फिर अनूप ने कहा बैठी हु मतलब हम अलग है तोह सिर्फ रहन-सहन से बाकी हम दोनों एक ही है। अगर तुम दिल से किसी के बारे में सोचोगे तोह तुम्हे कोई अलग नजर नहीं आएगा। ये सुन संगीता ने कहा ये दिल कुछ नहीं होता हैं। अनूप सुन के मुस्कुराने लगा और कहा ठीक है जैसा तुम बोलो। फिर हर कुछ दिनों में दोनों मिलते रहते बाते करते और अपने घर चले जाते।

धीरे-धीरे दोनों में बाते बढ़ने लगी और दोनों रोज मिलने लगे। 

अनूप ऑफिस से निकल के मॉल चले जाता और वहां संगीता उसका इंतिज़ार करती रहती। फिर एक दिन संगीता ने कहा की मुझे एक पूरा दिन तुम्हारे साथ रहना है देखना है की क्या करते हो तुम पूरा दिन। फिर एक दिन अनूप का छुट्टी था ऑफिस का तोह उसने संगीता को मिलने के लिए बुला लिया।

फिर अनूप हमेसा की तरह पहले मंदिर गया फिर वहा से आने के बाद मैदान गया जहां छोटे-छोटे बच्चे खेल रहे थे वहां अनूप उनके साथ खेलने लगा फिर कुछ देर बाद अनूप वहां से आश्रम गया जहां वो हमेसा लोगो को खाना खिलता उनका कुछ देर देख भाल करता फिर चले आता फिर वहा से निकलने के बाद अपने घर आया और अपने माँ को बिठा के घर का बचा हुआ काम खत्म किया फिर रात हो गयी और

उसने संगीता को घर छोड़ आया और कहा - " ये रहता है मेरा छुट्टी का दिन और यही है मेरी आम जिंदगी जहां जितना हो पता है उतना में करने की कोशिश करता हु। ये सुन संगीता बिना कुछ कहे चले गयी और पूरी रात सोचते रही ऐसे भी लोग होते है जहां अपना छोड़ दूसरे के बारे में इतना सोचते है और एक में हु जो आज तक अपने माँ-पापा की मदत तो दूर आज तक पुछा भी नहीं की वो कैसे हैं ? वो करते क्या है ? ये सब सोच संगीता भावुक हो गई और अपने माँ के पास चले गयी उसने देखा माँ उसकी काम कर रही होती है जैसे ही वो माँ पुकारती है माँ वहां से - " क्या हुआ कुछ चाहिए तुम्हे बोलो ? "

ये सुन संगीता और भावुक हो गयी और माँ को कहते हुए नहीं कुछ नहीं बस युही आयी थी और वहां से चले गयी। 

बस वो एक पल था जब संगीता को एहसास हुआ की सच में दिल से सोचने वाले लोग होते हैं। फिर क्या मानो संगीता की दुनिया ही बदल गयी अगली सुबह वो पापा के पास गयी और कहने लगी आज से में भी आपके साथ ऑफिस जाउंगी मुझे भी आपके काम का बोज उठाना है ये सुन पापा सोच में रह गए की क्या हो गया मेरी बेटी को आज इतने सालो बाद अचानक से ये ख्याल कैसे आया और अंदर ही अंदर खुश भी हो रहे थे की उनकी बेटी अब बड़ी हो रही है, अपने जिम्मेदारी समझने की काबिल बन गयी है।

बस फिर शाम को हमेसा की तरह वो अनूप से मिलने चले गयी बस फर्क इतना था आज की हमेसा वो घर से आती थी आज वो ऑफिस से आयी है।

ये देख अनूप को खुसी हुए और उसने संगीता से पुछा - तो दिलो होता है न ?

ये सुन संगीता हसने लगी और उससे माफ़ी मांगते हुए उससे फिरसे सुक्रिया कहा की उसके वजह से आज वो अपने आप को पहचान पायी की उसकी जिंदगी जिंदगी क्या थी और वो किसे समझ बैठी थी।

तो अब आगे क्या बताऊ आपको, आगे का तो आपको समझ आ गया होगा क्या हुआ रहेगा।

हर कहानी की तरह दोनों को अंत में एक दूसरे से प्यार हो गया और दोनों एक दूसरे के साथ रहने लगे। अनूप को एक साथी की जरुरत थी जो उसे समझे, प्यार करे और संगीता को सचाई की, एक जिम्मेदारी की जरुरत थी जो उससे अनूप ने दिखा दिया।

जाते जाते में आपको एक बात बताना ही भूल गया, दोनों एक दूसरे से मिले, बाते किये, घूमने, रहे एक दूसरे एक साथ लेकिन अभी तक दोनों ने एक दूसरे से अपना नाम नहीं पुछा। ना अनूप ने कभी पुछा की आपका नाम क्या हैं और नाही संगीता ने अनूप से कभी उसका नाम पुछा।

 तो इस कहानी का अर्थ यही था की किसी की पहचान जानना या पूछना जरुरी नहीं। जरुरी बस यह है की आप बिना जाने कितना उसपे यकीन करते हो और उसकी मदत करते हो। संगीता एक ऐसी लड़की थी जिसे हमेसा से घूमना, मस्ती करना, ये सब में अच्छा लगता और अनूप एक ऐसा लड़का था जिसे हमेसा से उसकी जिम्मेदारी उसे पकड़ी रहती। दोनों एक दूसरे से काफी अलग थे लेकिन अंत वही एक दूसरे के लिए बन गए।

तो प्यार कभी भी और किसी से भी हो जाता है, आपको ना उस के लिए अपनी जिम्मेदारी से भटकना है और नाही उस के लिए कुर्बानी देनी है।

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