विधवा या पुनर्विवाह का खास कर बुंदेलखंड में रिवाज नहीं है। लेकिन क्षत्रिय महासभा ने इस पुरानी मान्यता को दरकिनार कर एक नया संदेश दिया है।
बांदा में पुनर्विवाह को अशुभ या शान के खिलाफ सोच रखने वालों को अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की बांदा शाखा ने शनिवार को एक नई राह दिखाई। इसमें महासभा से बड़ी भूमिका क्षत्रिय समाज के उस बेटे और बेटी की है, जिसने तमाम कुरीतियों को दरकिनार कर देवर को पति और भाभी को पत्नी के रूप में अंगीकार कर लिया।
शनिवार की शाम इसकी गवाह बनीं। भव्य मैरिज हाल में विधवा विवाह पूरी शाने-ओ-शौकत से हुआ। विधवा या पुनर्विवाह का खास कर बुंदेलखंड में रिवाज नहीं है। लेकिन क्षत्रिय महासभा ने इस पुरानी मान्यता को दरकिनार कर एक नया संदेश दिया है। शनिवार को शाम यहां मैरिज हाल में विधवा वंदना सिंह ने अपने ही देवर शुभम सिंह उर्फ मनीष के साथ सात फेरे लिए।
जयमाल पहनाकर उसे अपना जीवन साथी बना लिया। शुभम ने भी अपनी भाभी रही वंदना को शुभ मुहूर्त में अपनी पत्नी का दर्जा दे दिया। इसी के साथ क्षत्रिय समाज में एक नई शुरूआत हो गई। विवाहोत्सव में दोनों पक्षों के खानदानी और व्यवहारी शरीक थे।
क्षत्रिय महासभा के बांदा जिलाध्यक्ष नरेंद्र सिंह परिहार सहित महासभा के तमाम पदाधिकारियों ने वर वधु दोनों को ही आशीर्वाद दिया। साथ ही कहा कि बुंदेली धरती से शुरू हुआ यह शुभ कार्य देश-प्रदेश तक फैलाया जाएगा। कहा कि कम उम्र में विधवा होने वाली बेटियों की उपेक्षा और दशा पर हम मूकदर्शक नहीं रह सकते।
मायके से भी अच्छा लगा ससुराल
विधवा से पुन: सुहागन बनीं वंदना सिंह स्नातक हैं। शनिवार को अपने देवर के साथ सात फेरे लेने से पूर्व उसने बताया कि शादी के कुछ महीने बाद ही पति की मौत ने उन्हें निराश कर दिया था। लेकिन सास-ससुर सहित ससुराल के सारे सदस्य उसके संकट मोचक साबित हुए। ससुराल की भरपूर सराहना करते हुए वंदना ने कहा कि वहां का माहौल उसे मायके से भी ज्यादा अच्छा लगता था। खुशी जताई कि उसे फिर वही परिवार ससुराल के रूप में मिला है। वंदना ने कम उम्र में विधवा होने वाली युवतियों से कहा कि हौसला रखें और परिवार की मदद से नए जीवन की शुरूआत करें।
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